Thursday, July 26, 2012

शमशान


कौन कहता है, यहाँ मौत का ही आसरा मिले ।
ये वो जगह है, जहाँ खुद ख़ुदा मिले ।
गोबर में है, माटी में है, ये लकड़ी का ढेर है ।
रोते-बिलखते पुतलों का भी, कुछ ही तो खेल है ।
शमा जले, कागज़ उड़े, सागर में नद मिले ।
रुख्सत हुए इस कैद से, खुद से ख़ुदा मिले।
मौन है सब, पाक़ है, न बैर है कोई ।
आज जाना खुद ही थे, न गैर है कोई ।
एहसान में तेरे, इंतज़ार में तेरे ।
माँगा है रब से बस ये ही, न तू कभी मिले ।

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