Friday, January 30, 2009

सबका मालिक एक

द्रष्टिकोण हो चक्चुहीन के , वो अलौकिक एहसास हो तुम
दरश को तुम्हरे सो जुग बीते , सूरदास का ज्ञान हो तुम
श्रवण हो त्रयोदश रसों के , अनुयाचिक वरदान हो तुम
कलरव हो घूर्णित सुख-दुःख के , अमृत का रसपान हो तुम
उपसर्ग हो जिह्वा जड़ के , धेर्य के शांत उजियार हो तुम
और प्रतिरोधक हो अधिमूलक के , विश्व के पालनहार हो तुम
अचल तेज़ हो रक्त शिरा के , स्वांस नासिका प्राण हो तुम
चित्तध्यान हो लंबित चन के , तानसेन का गान हो तुम
तीव्र वेग हो अनुभूति के , मधुसुदन भंडार हो तुम
रोधक हो तुम कामुक मन के , जन के तारणहार हो तुम
राजयोग में , ज्ञानयोग में , प्रेमयोग परिहार हो तुम
फलचारक हो कर्मयोग के , भक्तियोग बलिहार हो तुम
अल्लाह तुम हो , नानक तुम हो , ईसा मसीहा और राम हो तुम
कहते हैं विधाता तुमको , त्रिमुर्त रूप अवतार हो तुम

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